बुधनी टाईम्स sjp
· झांसी. 23 जुलाई को चंद्रशेखर आजाद की बर्थ एनिवर्सिरी है। 27 फरवरी, 1931 को इन्होंने इलाहाबाद के एलफेड पार्क में खुद को गोली मार ली थी। आजाद के शहीद होने के कई महीने बाद उनकी मां को पता चला था कि अब उनका बेटा नहीं रहा। गांव के लोगों ने उनका बहिष्कार कर दिया और उन्हें डकैत की मां कहकर बुलाया जाने लगा। DainikBhaskar.com आपको बताने जा रहा है कि चंद्रशेखर आजाद के शहीद होने के बाद उनकी मां ने कैसे जिदंगी काटी।जब डकैत की मां कहकर बुलाने लगे लोग
- लेखक/इतिहास के जानकार जानकी शरण वर्मा बताते हैं, चंद्रशेखर ने अपनी फरारी के करीब 5 साल बुंदेलखंड में गुजारे थे। इस दौरान वे ओरछा और झांसी में रहे। ओरछा में सातार नदी के किनारे गुफा के समीप कुटिया बना कर वे डेढ़ साल रहे थे।
- फरारी के समय सदाशिव उन विश्वसनीय लोगों में से थे। आजाद इन्हें अपने साथ मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा गांव ले गए थे और अपने पिता सीताराम तिवारी और माता जगरानी देवी से मुलाकात करवाई थी।
- सदाशिव आजाद के शहीद होने के बाद भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करते रहे और कई बार जेल गए। देश को अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद वह चंद्रशेखर के माता-पिता का हालचाल पूछने उनके गांव पहुंचे। वहां उन्हें पता चला कि चंद्रशेखर की शहादत के कुछ साल बाद उनके पिता का भी देहांत हो गया था।
- आजाद के भाई की मृत्यु भी उनसे पहले ही हो चुकी थी। पिता के देहांत के बाद चंद्रशेखर की मां बेहद गरीबी में जीवन जी रहीं थी। गांव के लोगों ने उनका बहिष्कार कर दिया और डकैत की मां कहकर बुलाने लगे। गरीबी के बावजूद उन्होंने किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया।
- वो जंगल से लकड़ियां काटकर लाती थीं और उनको बेचकर ज्वार-बाजरा खरीदती थी। भूख लगने पर ज्वार-बाजरा का घोल बनाकर पीती थीं। उनकी यह स्थिति देश को आजादी मिलने के 2 साल बाद (1949) तक जारी रही।
- आजाद के भाई की मृत्यु भी उनसे पहले ही हो चुकी थी। पिता के देहांत के बाद चंद्रशेखर की मां बेहद गरीबी में जीवन जी रहीं थी। गांव के लोगों ने उनका बहिष्कार कर दिया और डकैत की मां कहकर बुलाने लगे। गरीबी के बावजूद उन्होंने किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया।
- वो जंगल से लकड़ियां काटकर लाती थीं और उनको बेचकर ज्वार-बाजरा खरीदती थी। भूख लगने पर ज्वार-बाजरा का घोल बनाकर पीती थीं। उनकी यह स्थिति देश को आजादी मिलने के 2 साल बाद (1949) तक जारी रही।
जब झांसी में हुआ आजाद की मां का निधन- आजाद की मां का ये हाल देख सदाशिव उन्हें अपने साथ झांसी लेकर आ गए। मार्च 1951 में उनका निधन हो गया। सदाशिव ने खुद झांसी के बड़ागांव गेट के पास शमशान घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया था।
- घाट पर आज भी आजाद की मां जगरानी देवी की स्मारक बनी है।