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Sunday, 11 June 2017

ये है रानी लक्ष्मीबाई की तलवार, आज भी चमकती है इसकी धार

बुधनी टाईम्स 

  ग्वालियर. जिस तेज धार वाली तलवार और दूसरे हथियारों से झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर में अंग्रेजी सेना से 15 दिन तक लोहा लिया था, वह आज भी ग्वालियर के म्यूजियम में सुरक्षित हैं। इन्हीं हथियारों से लैस हो रानी घोड़े पर सवार होकर दुश्मनों से लोहा लेती थीं। उनके बलिदान के बाद हथियार बाबा गंगादास की शाला में रहे, उनके बनारस जाने के बाद सिंधिया राजवंश ने रख लिए। इस तलवार से युद्ध कर लक्ष्मीबाई कहलाई खूब लड़ी मर्दानी....

....झांसी की रानी लक्ष्मीबाई 2 जून 1858 को ग्वालियर आई और 18 जून को शहीद हो गई थीं। 1858 की जून के दौरान रानी ने 15 दिन तक ग्वालियर में अंग्रेजों से लोहा लिया था। इस मौके पर dainikbhaskar.com पेश कर रहा है वो हथियार जिन्हें रानी ने युद्ध में इस्तेमाल किया था....

-जब अंग्रेजों ने ग्वालियर में स्वर्ण रेखा नदी के पास रानी लक्ष्मीबाई को घेरा तो वे पायजामा स्टॉकिन बूट पहने रानी हथियारों से पूरी तरह से लैस थीं।
-उनकी विशेष तलवार भी इन हथियारों में से एक थी। 18 जून, 1858 को ग्वालियर में ही अंग्रेजों से युद्ध करते हुए रानी शहीद हो गईं। उस दौरान उनके पास यही शस्त्र मौजूद थे।
- आखिरी सांस तक रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों की बारी फौज से जिन हथियारों की दम पर लोहा लेती रहीं रहीं, वो आज भी ग्वालियर के म्यूजियम में देखे जा सकते हैं।
- सहेज कर रखी गई तलवार ही नहीं, रानी के दूसरे हथियार, गुप्ती, तलवार, लंबे पटे, कटार, खांडा व ढाल जैसे हथियार भी उनकी वीरता को साक्षात कर देते हैं।
लंबे समय तक सिंधिया राजवंश के पास रहे ये हथियार
- रानी के शहीद होने के बाद ये हथियार बाबा गंगादास ने अपनी शाला में सहेज कर रख लिए। युद्ध खत्म होने के बाद बाबा को रानी की मदद और अंग्रेजों से युद्ध करने की वजह से ग्वालियर रियासत से देश निकाला दिया गाया था, और वो बनारस चले गए थे।
- रानी के हथियारों समेत बाबा गंगादास की शाला की युद्ध में उपयोग में लाई गई दूसरी धरोहरें सिंधिया राजवंश ने रख ली थीं। देश आजाद होने के बाद ये हथियार नगर निगम के म्यूजियम में पहुंच गए। म्यूजियम में कड़ी सुरक्षा के बीच इन हथियारों को सुरक्षित रखा गया है।
झांसी के लोग चाहते हैं ये हथियार
- लक्ष्मीबाई झांसी की रानी थीं और वहां के लोग चाहते हैं कि ये हथियार उनके शहर में रखे जाएं। इसके लिए यूपी का पुरातत्व विभाग प्रयास करता रहता है।
- हालांकि रानी की शहादत ग्वालियर में हुई थी, इसलिए यहां के नागरिक भी इन हथियारों से भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं।